शिकायत
यूँ तो हमको भी शिकायत कम नहीं
पर लबों को खोलने का दम नहीं
हर ख़ुशी ग़म के अंधेरों से घिरी
शादमानी का कहीं आलम नहीं ( शादमानी - Joy,Happiness )
जब तलक खुद पे नहीं गुजरी कभी
हादसों पे आँख होती नम नहीं
भूल बैठे वायदों की अहमियत
अपनी बातों पर कोई कायम नहीं
अपनी अपनी फ़िक्र में डूबा जहां
खुशनुमा लगता कोई मौसम नहीं
हो रही है बस सियासत हर जगह
ज़ख्म ही मिलते रहे, मरहम नहीं
Sunil_Telang/30/01/2014
No comments:
Post a Comment