हास परिहास
ज़िन्दगी को आम से कुछ ख़ास कर
ग़म भुला के, हास और परिहास कर
काम दुनिया में नहीं मुश्किल कोई
सिर्फ अपने आप पर विश्वास कर
चाहे कितनी भी अँधेरी रात हो
एक उजली सुबह का आभास कर
हैसियत तेरी किसी से कम नहीं
अपने मन से दूर ये संत्रास कर
अपने हाथों से तू लिख तक़दीर को
ख्वाब बन जायें हकीकत, आस कर
Sunil_Telang/28/01/2014
No comments:
Post a Comment