Saturday, January 18, 2014

HAKIKAT



हकीकत

हकीकत वो नहीं  होती नज़र आती  है जो अक्सर 
ज़रा  तस्वीर  के पीछे  भी  तो  इक बार  देखा कर 

बदल पाये नही कुछ भी  ज़मीं  के  वो खुदा बन के 
हमें  बहलाते रहते  हैं  रुपहले  ख्वाब  दिखला कर 

उमर  गुज़री  ख़तम  होता   नहीं  हैं  मोह सत्ता  का 

कोई  चाहे  ना  चाहे  पर  बने  हैं  बोझ  जनता  पर

किसे  अब   दोष   दें  हम  खुद  बने   बैठे  तमाशाई  

सितम सहते  रहे  उनके  कभी हँसकर कभी रोकर

नई   उम्मीद  जागी  है  हुआ   बदलाव  कुछ   ऐसा  

सताने लग गया हर ख़ास को आम आदमी का  डर  

Sunil_Telang/18/01/2014

  




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