गणतंत्र
सौ नुक्स ढूंढने में गुज़री है उम्र सारी
कुछ कर के भी दिखायें हिम्मत नहीं हमारी
करती रही परेशां बस दूसरों की खुशियां
लोगों से जलन रखने की है अज़ब बीमारी
जीते हैं लोग लेकर अब झूठ का सहारा
सच्चाई गुमशुदा है सोई ईमानदारी
उसकी कवायदों को लोगों ने ऐसे देखा
दिखला रहा तमाशा जैसे कोई मदारी
कब तक पुराने ढर्रे पर सोचते रहेंगे
ये खामियां किसी दिन सबको पड़ेंगी भारी
गण से अलग हुआ है गणतंत्र है ये कैसा
रह जाये ना दिखावा ये संस्कृति हमारी
Sunil_Telang/25/01/2014
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