कैसा तंत्र
खबर तो थी दुखद पर दिल ना रोया
ज़मीर इंसान का लगता है सोया
वो हँसता खेलता सा एक बचपन
हिकारत से भरी नज़रों में खोया
कलंकित हो गई इंसानियत क्यों
ये किसने नफरतों का बीज बोया
भुला देंगे नियति इसको समझकर
तमाशा रोज़मर्रा का हो गोया
पराये हो रहे क्यों लोग अपने
ये कैसा तंत्र है अब तक जो ढोया
Sunil _Telang/01/02/2014
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