मनोरंजन
हो गया धरना ख़तम लो अब शुरू चिन्तन हुआ
ज़िक्र आया हर जुबां पर जिसका जैसा मन हुआ
इक तमाशा और नौटंकी नज़र आई कहीं
और किसी मज़लूम और बेबस का शीतल तन हुआ
हर किसी का चाल ,चेहरा और चरित दिखने लगा
कश्मकश में बस परेशां आम जन जीवन हुआ
भूल कर मुद्दे ज़रूरी हो रही छींटा कशी
आदमी का जीना मरना भी मनोरंजन हुआ
Sunil _Telang/21/0/12014
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