तमाशा
इक तमाशा हूँ , ज़माने के लिये
जी रहा हूँ मुस्कुराने के लिये
बात सच्ची हो, नहीं आता यकीं
लोग बैठे आज़माने के लिये
ज़ुल्म सहने की पड़ी आदत यहॉं
लब खुलेंगे बस बहाने के लिये
आसमां में लोग कुछ उड़ने लगे
कुछ तरसते एक दाने के लिये
लुट गया घर अब तो आँखें खोलिये
कोई आया है जगाने के लिये
Sunil_Telang/27/04/2014
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