Friday, April 25, 2014

EHSAAS


एहसास

लोग  अपने  आप   से  डरने  लगे  हैं 
जाने क्या एहसास वो करने लगे  हैँ 

दर्द  होता    है  मगर  होता   नहीं  है 

ज़ख्म  अपने आप  ही  भरने लगे हैं 

हर  खुशी  ग़म  के अंधेरों से घिरी है

ख्वाब पत्तों  की  तरह  झरने लगे  हैं

हर  तरफ़   है  भूख   लाचारी ग़रीबी 
लोग  जीने   के  लिये  मरने  लगे  हैं  

आयेगा शायद कोई  हमदर्द  बन  के 

लोग अपना भी ज़िकर करने लगे हैँ 

Sunil _Telang /25/04/2014




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