एहसास
लोग अपने आप से डरने लगे हैं
जाने क्या एहसास वो करने लगे हैँ
दर्द होता है मगर होता नहीं है
ज़ख्म अपने आप ही भरने लगे हैं
हर खुशी ग़म के अंधेरों से घिरी है
ख्वाब पत्तों की तरह झरने लगे हैं
हर तरफ़ है भूख लाचारी ग़रीबी
लोग जीने के लिये मरने लगे हैं
आयेगा शायद कोई हमदर्द बन के
लोग अपना भी ज़िकर करने लगे हैँ
Sunil _Telang /25/04/2014
No comments:
Post a Comment