Wednesday, April 30, 2014

DUHAAI



दुहाई 

मंज़ूर  नहीं   हमको    बातें   ईमान   की 
बस   दास्तां   यही   है  हिन्दोस्तान  की  

वो पड़ गया अकेला सच्चाई की डगर पे
तोहमत लगा  दीं  उसपे  सारे जहान की 

घर  में  ही  बैठे  बैठे  देखेंगे सब  तमाशा 
फितरत  रही  सदा ये  आम इन्सान की  

ये  जात और मज़हब में  बंट  रही खुदाई  
सौगात  बन  गई  है  दुश्मन ये  जान की 

अब कौन यहां है जो  फ़रियाद  सुने तेरी 
देते    रहो    दुहाई    बस   संविधान   की 

Sunil_Telang/30/04/2014





Tuesday, April 29, 2014

JOSHE-JAWAANI



जोशे - जवानी

अभी तुमको समझ  ना  आयेगी, जोशे-जवानी  है  
हकीकत  है यही, ये आज  घर  घर  की  कहानी है 

नये  अरमान हैं दिल में , नये  सपने  हैं आँखों  में 
तुम्हारे बूढ़े  माँ  और बाप  की  आँखों  में  पानी है 

नहीं हम  सीख  पाये  ये  नई  तहज़ीब, ये  फैशन  
ये  रौनक  दो  घड़ी  की है, यहां  हर चीज़ फानी है

तू  रूठे या  हँसे, तेरे  ही  सुख दुःख  से  बंधे हैं हम 
दुआयें  तुझको  देते  ही  उमर  अपनी  बितानी है 

खता  कोई हुई  तुझसे   या  कोई  भूल  अपनी हो 
ना ठुकराना  हमें, दो चार दिन की ज़िन्दगानी है 

Sunil_Telang/29/04/2014


Josh-e-Jawani

Abhi tumko samajh na aayegi, Josh-e-Jawani hai
Haqikat hai yahi, Ye aaj ghar ghar ki kahani hai

Naye armaan hain dil me, Naye sapne hain aankhon me

Tumhare budhe Maa aur Baap ki aankhon me paani hai 

Nahi hum seekh paaye Ye nai tehzeeb Ye faishon

Ye raunak do ghadi ki hai Yahan har cheez faani hai 

Tu roothe ya hanse Tere hi sukh dukh se bandhe hain hum
Duaayen tujhko dete hi Umar apni bitaani hai

Khata koi hui tujhse Ya koi bhool apni ho

Na thukraana hume Do chaar din ki zindgaani hai

Sunil_Telang




Sunday, April 27, 2014

TAMAASHA



तमाशा

इक  तमाशा  हूँ , ज़माने  के   लिये
जी  रहा   हूँ   मुस्कुराने   के   लिये  

बात सच्ची  हो,  नहीं  आता  यकीं 

लोग    बैठे    आज़माने    के  लिये 

ज़ुल्म  सहने  की  पड़ी आदत  यहॉं  
लब   खुलेंगे   बस  बहाने  के  लिये 

आसमां  में  लोग  कुछ  उड़ने  लगे 
कुछ  तरसते  एक   दाने   के  लिये  

लुट गया घर अब तो आँखें खोलिये 
कोई  आया   है   जगाने   के   लिये  

Sunil_Telang/27/04/2014




Friday, April 25, 2014

JANMAT


जनमत 

वोट  कुछ  हिन्दू मुसलमां हो गये 
जो  बचे  वो  लोग  इन्सां  हो  गये 

सरफिरे  लोगों  ने  बांटा  दो  जहां 
लोग अपने घर  में   मेहमां हो गये 

चंद  सिक्कों मे  बिकी इंसानियत 
वो   गरीबों   पर  मेहरबां  हो  गये 

हाल   अपना  पूछने  आये   हैं   वो  
जाने  कितने  हमपे एहसां हो गये

कैसा जनमत,डर का साया चारसू 
लोग  चुन चुन   के परेशां  हो  गये  

Sunil_Telang/25/04/2014


EHSAAS


एहसास

लोग  अपने  आप   से  डरने  लगे  हैं 
जाने क्या एहसास वो करने लगे  हैँ 

दर्द  होता    है  मगर  होता   नहीं  है 

ज़ख्म  अपने आप  ही  भरने लगे हैं 

हर  खुशी  ग़म  के अंधेरों से घिरी है

ख्वाब पत्तों  की  तरह  झरने लगे  हैं

हर  तरफ़   है  भूख   लाचारी ग़रीबी 
लोग  जीने   के  लिये  मरने  लगे  हैं  

आयेगा शायद कोई  हमदर्द  बन  के 

लोग अपना भी ज़िकर करने लगे हैँ 

Sunil _Telang /25/04/2014




Wednesday, April 23, 2014

DEEPAK



दीपक 

उजालों  के  लिये  रस्ता  बनाओ
अँधेरे   दूर    हों   दीपक  जलाओ  

गिले  शिकवे तो तेरे कम न होंगे 
ज़रा खुद को भी आईना दिखाओ 

मिटा ना दे कहीं अपनी वो हस्ती 
किसी  के सब्र  को ना आज़माओ

तमाशा   देखते   ये   उम्र   गुज़री 
कभी तो हौसला अपना दिखाओ 

मिलेगी  ज़िन्दगी  ना  ये  दुबारा 
वतन  के वास्ते कुछ काम आओ  

Sunil_Telang/23/04/2014












Monday, April 14, 2014

KISMAT



किस्मत 

छोड़  कर  मैदान  कोई  चल  दिया 
सोचकर  मुश्किल  बहुत  हालात है 
वो  कदम  पीछे  कभी  करता  नहीं  
अपने  अपने   हौसले   की  बात  है 

घिर   गया  हर  आदमी  जंजाल में 

मान  बैठा, कुछ न अब  हो पायेगा
बैठकर    गुपचुप   तमाशा   देखना  
बस   यही   उसकी  रही  औकात है  

अब  कहाँ  गायब  हुआ वो बांकपन 
देख  कर  अन्याय  होती थी चुभन 
भूल   बैठा    ज़ुल्म  अत्याचार  को 
डर   का  साया  आज  तेरे  साथ  है 

लोग  कुछ आये  निकल कर सामने 
तेरी   खातिर, जां  हथेली  पर लिये 
तुमको  ये लगतीं हैं बस नादानियां 
तुझ पे  हावी बस धरम और जात है 

पूछ  अपने   आप   से  इक   बार  तू 
क्या किया अब तक वतन के वास्ते 
ज़िन्दगी  को   कायराना  मत बना 
तेरी   किस्मत  आज   तेरे   हाथ  है 

Sunil_Telang/14/04/2014









Friday, April 11, 2014

TAQDEER

 

 तक़दीर

उम्र  छोटी  ही सही  पर  हौसले  कुछ   कम  नहीं
कर  सके  ना  हम पढ़ाई  फिर भी कोई ग़म नहीं
अपने   हाथों   से   लिखेंगे   दास्तां   तक़दीर  की
ये प्रगति तुमको मुबारक आँख  अपनी नम नहीं 

Sunil_Telang/12/04/2014

Thursday, April 10, 2014

REHNUMA


रहनुमा

ज़रा  आँखों से  पर्दों  को  हटा  कर  देखिये 
हकीकत  और  है , नज़रें  जमाकर देखिये 

नई   रंगत  नज़र  आती  है,  चेहरे  हैं  वही 
तकाज़ा  है  कि पहले आज़मा  कर देखिये  

समझ ना पाये जो ये भूख, लाचारी है क्या 
सड़क पे एक दिन उनको बिठा कर देखिये 

जो  दलबदलू  हुये  सत्ता  को पाने  के लिये 
उन्हें  इक  बार  आईना  दिखाकर   देखिये 

नहीं मुश्किल है कोई राह, मंज़िल आयेगी  
यकीं को रहनुमा अपना  बना  कर देखिये  

Sunil_Telang/10/04/2014




Monday, April 7, 2014

LAHAR


लहर 

वतन अपना है फिर भी  क्यों  पराये लोग  लगते हैं 
यहाँ   दिल  पर  हज़ारों  चोट  खाये  लोग  लगते  हैं 

फ़क़त वादों  से  और बातों से दिल बहला न पाओगे 
यहाँ   सब  हुक्मरानों   के  सताये   लोग   लगते  हैं 

कहाँ  से आ  गये  जो  आईना  दिखला  रहे  सबको 
भरी  महफ़िल में ये सब बिन बुलाये लोग लगते हैं 

जुनूं   तारी   हुआ  ऐसा,  लिये   हैं  जां  हथेली   पर 
अलग  मिटटी  से फुर्सत में बनाये  लोग  लगते  हैं 

रुके  ना काफिला तेरा , मिलेगी  एक  दिन  मंज़िल 
लहर  बदलाव  की  दिल  में  समाये  लोग लगते हैं 

Sunil_Telang/07/04/2014


Thursday, April 3, 2014

ARE LAANAT HAI


अरे लानत  है 

अरे  लानत  है तुम  सब  पर शिकायत  रोज़ करते हो
मगर  जिनसे   परेशां  हो  उन्ही   का  दम्भ  भरते हो

यही   हैं   जो   नहीं   सुनते   तेरे  दुःख   दर्द   के  नाले 
तेरी    माँ    बेटियों    की   लाज   लुटते   देखने   वाले
तेरा     हक़      छीनकर   तेरी     कमाई    लूटने   वाले 
जला   कर   आग  नफरत  की  तेरा  घर  फूंकने  वाले

भुला कर ज़ख्म अपने  किस लिये फिर धीर धरते हो 

बड़े  मासूम  बन   कर  फिर  तेरे  दर  पर  वो  आयेंगे 
सभी   प्रतिद्वन्दियों  की  खामियां  तुझको  गिनायेंगे  
मगर    उपलब्धियां   अपनी    नहीं   कोई    बतायेंगे 
कभी  वो   लोभ   लालच  दे  के  भी  तुझको मनायेंगे 

खुशी दो पल की ले कर क्यों उमर  भर  रंज करते हो

सबक इनको सिखा दो फिर मिला है आज इक मौका
तुझे   बातों   में   बहला   के   ना  दे  पाये  कोई  धोका 
लुटेरा   ना    बने    कोई   तेरे  अनमोल   सपनों    का
तेरे  हाथों   में  है दम   राज  हो  अब   तेरे  अपनों  का

परख  कर वोट दो  किस बात  से  दिन रात  डरते  हो 

Sunil _Telang /03/04/2014





 


    

Wednesday, April 2, 2014

ANDH BHAKTI


अंधभक्ति

फिर वही मासूमियत रुख पर नज़र आने लगी 
लीडरों  को  आम जनता की फिकर खाने लगी 

ज़िक्र फिर होने लगा लोगों के दुख और दर्द का
कागज़ी कुछ घोषणायें, दिल को बहलाने लगी 

फिर धर्म और जात का एहसास लोगों को हुआ 
कुछ   दबी  चिंगारियां   माहौल  गरमाने  लगी 

कैसी नीति,, कैसे वादे , अब रहा ना  याद कुछ 
राज सत्ता  की  चमक  आँखों   को  हर्षाने  लगी

फिर वही नादानियाँ क्या  सोचना क्या देखना 
अंधभक्ति हर  किसी  पर  रंग   दिखलाने  लगी 

Sunil_Telang/02/04/2014