Tuesday, March 11, 2014

NAASOOR


नासूर 

ख्वाब की दुनिया है उजली,पर हकीकत दूर है 
देश  का  आम  आदमी, लाचार  है , मजबूर  है

तेरी   आहें   और  फरियादें  नहीं  सुनता  कोई  
हर  नुमाइन्दा  यहाँ  सत्ता   के  मद  मैं  चूर  है 

घूम  फिर के लौट आना  है उसी  दहलीज  पर 
फिर  हिकारत  और   बर्बादी  तुझे   मंज़ूर   है 

ढूँढता  है  तू  कहाँ  सच्च्चाई  और  ईमान को 
लूट   भ्रष्टाचार   तो   ये   आज   का  दस्तूर  है 

कैसी  ये  चारागरी  है, मर्ज़  ना  समझा  कोई 
ज़ख्मे  दिल  सहलाते सहलाते  बना नासूर है 

Sunil_Telang/11/03/2014


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