बन्दगी
कोई ख्वाहिश नहीं दिल में
तो ये ग़म और खुशी क्या है
नहीं मक़सद अगर कोई
तो फिर ये ज़िन्दगी क्या है
हुआ है ये जनम तेरा
नया कुछ कर दिखाने को
तू अब तक ना समझ पाया
भला ये आदमी क्या है
ग़मों के बोझ की गठरी
उठाये रोज़ फिरता तू
कभी देखा नहीं तेरे
लबों पर ये हँसी क्या है
कोई हिन्दू , कोई मुस्लिम
कोई ईसाई बन बैठा
मगर समझा नहीं अब तक
खुदा की बन्दगी क्या है
Sunil _Telang/06/07/2014
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