Wednesday, June 25, 2014

ACHCHHE DIN


अच्छे    दिन 

बेवजह  ये  आँखें  ना  अश्क़वार  कीजिये 
हँस के इन्सानियत को शर्मसार कीजिये 

जान  हथेली पे लिये जीते   हैं  लोग  यहां 
रोज़  नये  हादसों  का  इन्तज़ार कीजिये

किसको  दें  दोष यहां  लूटा   है अपनों  ने                              
चर्चा  ना  दुश्मनों  की  बार बार  कीजिये 

हादसे की जांच होगी फिर पुरानी बातें हैं
कुछ  तो   नया   काम   सरकार  कीजिये  

हादसा ये छोटा था  इसका कुछ ग़म नहीं
अच्छे    दिन   आयेंगे   ऐतबार   कीजिये 

Sunil _Telang/25/06/2014


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