Sunday, March 30, 2014

ZARA PEHCHAAN



ज़रा  पहचान 

कहो  ना  बात  तुम  सच्ची  कहेंगे  लोग  दीवाना 
यहाँ लोगों  ने पैसे को ही बस अपना  खुदा माना 

परेशानी में  हैं  दिन रात  फिर भी जी रहे हैं लोग 

अभी सीखा नहीं  बदलाव की हिम्मत जुटा पाना 

हमेशा दोष किस्मत को  दिये जाने से क्या होगा  

नहीं मिलता किसी को घर में बैठे  आब ओ दाना 

करोगे कब तलक फ़रियाद यूँ ही गिड़गिड़ाते तुम 
ग़ुलामी से तो  अच्छा  है कटा के सर चले  जाना 

ज़रा  पहचान ले खुद  को  नहीं  तेरा  कोई  सानी 
तेरे  हाथों  में  कायम  है तेरी दुनिया संवर जाना 

Sunil_Telang/30/03/2014




Thursday, March 27, 2014

AARZOO



आरज़ू  

अपनी  जुबां  से  रोज़ मुकरने लगे हैं लोग
कुछ पूछने के  डर  से सिहरने लगे हैं लोग 

बढ़ने लगा है कथनी करनी में फर्क  इतना 
आईना   देखने   से    डरने    लगे   हैं  लोग 

टूटी  हैं  बंदिशें   अब  रहता  नहीं   है  काबू 
खिलवाड़ अस्मिता से  करने  लगे  हैं लोग 

सबको  फिकर लगी   है  अपने  वज़ूद  की 
पत्तों की तरह उड़ के बिखरने  लगे  हैं लोग

शायद   कोई   सँवारे   बेरंग  ज़िन्दगी  को 
जीने  की  आरज़ू  में   मरने  लगे   हैं  लोग 

Sunil_Telang/27/03/2014









 


Tuesday, March 25, 2014

KISMAT


किस्मत 

वो    अकेला   रह   गया  मैदां  में अक्सर 
जिसने सोचा कुछ अलग कर के दिखायें

हर  गली   हर  मोड़   पर   चर्चे  हैं  उसके 
तंज  तो  दो  चार  हम   भी  कसते  जायें 

साथ  मिल  जुल  के  चलें, सीखा नहीं  है 
चलिये   उसकी   राह   में   कांटे  बिछायें 

हो  अभी  नादान  तुम,  सीखा  नहीं कुछ 
कुछ  न  बदलेगा यहाँ,  चल   के   बतायें 

लोग   जीते   हैं   यहाँ   हर  रोज़   मर  के 
हौसले     कैसे      भला     उनके     बढ़ायें

अपनी किस्मत अपने हाथों से लिखें जो 
नाम दुनिया में वो  ही  बस  कर के जायें  

Sunil_Telang/25/03/2014


Friday, March 21, 2014

BETAAB



बेताब

लोग  कुछ  बेताब हैं सत्ता को  पाने   के लिये 
और  कुछ  संघर्ष  करते  हैं  ज़माने  के  लिये  

याद  रखना वो  लड़ाई, ज़ुल्म, अत्याचार  से  
हादसे   होते   नहीं   हैं   भूल  जाने   के  लिये 

कुछ तमाशा रोज़ दिखलाते तमाशा बन गये  
रूठ  जाते   हैं   कोई  आये  मनाने   के   लिये   

हर तरफ मौक़ा परस्ती,दोस्ती क्या दुश्मनी  
रह गई सच्च्चाई नैतिकता, दिखाने के लिये  

कौन  है   हमदर्द  तेरा , ये  ज़रा  पहचान   ले 
आ रहे सौगात  लेकर  फिर  मनाने  के लिये 

Sunil_Telang/21/03/2014

Tuesday, March 18, 2014

DAAG


दाग 

रास्ता  दिखला  रहे, मंज़िल ना खुद  जो पा  सके 
ढूंढते  हैं  फिर  बहाना  दिल  को जो  बहला  सके

वो   उठाते  रह  गये   बस  दूसरों  पर  उंगलियां 
दाग  उन को अपने चेहरे  के   नज़र ना आ  सके 

काम  बाकी  है  बहुत ,मौक़ा  उन्हें  फिर चाहिये 
क्या  किया इतने बरस, ये  बात  ना  समझा सके 

लोग   इतने   भी  नहीं  नादान  हैं सुन लीजिये 
जो  गिरे  दिल से न फिर पेहचान  अपनी पा सके 

Sunil_Telang/18/03/2014










Monday, March 17, 2014

HOLI HAI



होली है 

ज़िन्दगी    बेरंग    है   तो     रंग   भरिये 
सिर्फ  घर  में   बैठ  कर  सोचा न करिये  

आयेंगे  सुख दुःख  तेरे  हाथों  में  क्या है 
जो   मिले   अपनाइये,  ना   रंज  करिये

सात   रंगों    से    सजा   त्यौहार   आया 
कुछ सुनहरे ख्वाब फिर आँखों  में भरिये   

भूल कर  शिकवे गिले खुशियां  मना  लें
आज   तो   अवसाद   से   बाहर  उबरिये  

मिट   न   जाये  संस्कृति  जो   है  हमारी 
स्वागतम  इस  पर्व  का  हर  बार  करिये 

Sunil_Telang/17/03/2014


















Sunday, March 16, 2014

GULSHAN ME


गुलशन में 

फूल  तो  हैं  हज़ार  गुलशन  में 
कौन  लाये   बहार  गुलशन  में 

बाग़बाँ   चैन  से  घर   सोया  है 
उड़  रहा  है  गुबार  गुलशन  में 

रुत बदलती नहीं, खिजां दस्तक  
दे   रही    बार  बार  गुलशन  में 

शुष्क  पत्ते   हुये   दरख्तों   के 
हुई   शाखें   बेज़ार  गुलशन  में 

दूर  से  इक महक  तो  आई  है
ये  नयी   है  बयार  गुलशन में   

शायद  इस बार फ़िज़ा बदलेगी 
चढ़  रहा  है  खुमार गुलशन में 

Sunil_Telang/16/03/2014

Thursday, March 13, 2014

AVSARVAAD


अवसरवाद

ये  चुनावी  जंग  है  या   सिर्फ  अवसरवाद  है  
दिनबदिन दल बदलुओं की बढ़ रही तादाद है                     
अब है नैतिकता कहाँ  चारों तरफ अवसाद है 
रोज़  सत्ता  के  लिये  तिकड़म नयी  ईज़ाद है 

बुत परस्ती में  घिरे सब  हर तरफ उन्माद है 
किसने दीं कुर्बानियां ये आज किसको याद है 
आम जनता के लबों पर आज भी फ़रियाद है
लोग  कहते  हैं  कि  अपना   देश ये आज़ाद है 

Sunil _Telang/13/03/2014


Tuesday, March 11, 2014

NAASOOR


नासूर 

ख्वाब की दुनिया है उजली,पर हकीकत दूर है 
देश  का  आम  आदमी, लाचार  है , मजबूर  है

तेरी   आहें   और  फरियादें  नहीं  सुनता  कोई  
हर  नुमाइन्दा  यहाँ  सत्ता   के  मद  मैं  चूर  है 

घूम  फिर के लौट आना  है उसी  दहलीज  पर 
फिर  हिकारत  और   बर्बादी  तुझे   मंज़ूर   है 

ढूँढता  है  तू  कहाँ  सच्च्चाई  और  ईमान को 
लूट   भ्रष्टाचार   तो   ये   आज   का  दस्तूर  है 

कैसी  ये  चारागरी  है, मर्ज़  ना  समझा  कोई 
ज़ख्मे  दिल  सहलाते सहलाते  बना नासूर है 

Sunil_Telang/11/03/2014