नब्ज़
नब्ज़ जनता की समझ पाते नहीं हैं
फिर भी कुर्सी छोड़कर जाते नहीं हैं
खुद ही लड़ना है तुझे अपनी लड़ाई
वो कभी ज़ख्मों को सहलाते नहीं हैं
रोज़ मिलते हैं लगा कर इक मुखौटा
असलियत अपनी वो दिखलाते नहीं हैं
दूसरों की ग़लतियाँ रहतीं जुबां पर
दाग अपने तो नज़र आते नहीं हैं
जानकर फिर भी उन्हें सर क्यों चढ़ायें
दुःख में तेरे काम जो आते नहीं हैं
Sunil_Telang/03/12/2013
No comments:
Post a Comment