BOJH
बोझ
बोझ मैं था बता दिया होता
बेवफाई का ना ग़ुमां होता
दो कदम चल के लौटना था तुम्हें
कैसे मंज़िल का फैसला होता
तेरी फुरकत का ग़म भी सह लेता
पास में दिल जो दूसरा होता
बात तेरे भी दिल की सुन लेता
काश ये दिल ना बेजुबां होता
अपनी उल्फत पे नाज़ मैं करता
साथ तेरा अगर मिला होता
Sunil_Telang/19/12/2013
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