मुसाफिर
जान जोखिम में लिये चलते मुसाफिर
जान जोखिम में लिये चलते मुसाफिर
खौफ
के साये तले पलते मुसाफिर
उम्र
बीती, राज बदले, पर ना बदले
भेड़ बकरी की
तरह पलते मुसाफिर
सर्द रातों की सिहर महसूस करते
गर्म लपटों में कभी जलते मुसाफिर
कुछ नये बदलाव
की उम्मीद लेकर
रोज़ अपने आप को छलते मुसाफिर
रोज़ अपने आप को छलते मुसाफिर
रोज़मर्रा की कमाई का ही जरिया
हो गये बस फूलते फलते मुसाफिर
जान की परवाह क्या आम आदमी की
अपने हाथों को रहे मलते मुसाफिर
Sunil_Telang/13/08/2014
Sunil_Telang/13/08/2014
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