चिकने घड़े
चिकने घड़ों पे कोई होता असर नहीं है
मौसम बदल गया है उनको खबर नहीं है
तुम लड़ रहे लड़ाई जनता के न्याय हक़ की
वो सोचते कवायद ये कारगर नहीं है
जनता तो है भुलक्कड़, भूलेगी सब घोटाले
ठुकरायेगी किसी दिन इसका भी डर नहीं है
हिम्मत नहीं किसी में आये तेरे मुक़ाबिल
लब पर हँसी है फीकी लेकिन जिगर नहीं है
मानें वो या ना मानें इतना मगर समझ लें
ये अंधे, गूंगे , बहरों का अब शहर नहीं है
Sunil_Telang/02/11/2013
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