दुहाई
खुल गई है आँख जब खुद पे बन आई
दे रहे अब लोकतंत्र की दुहाई
वक़्त रहते ना सुनी फ़रियाद कोई
ना ही समझे उनके हक की है लड़ाई
टालने से ये समस्या और बढ़ी है
बात इतनी सी समझ में आज आई
कब तलक शोषण सहे इंसान अपना
आग ये विद्रोह की किसने लगाईं
रास्ता हिंसा का चुनकर कुछ ना पाया
मिल गये हैं ख़ाक में सब आततायी
Sunil_Telang/26/05/2013

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