बाज़ार
भांजे दामाद रिश्तेदार ऐसे
देश के धन के हों हिस्सेदार जैसे
हर समय चेहरे पे रहती मुस्कुराहट
जेब में इनके पड़ी सरकार जैसे
काम हो छोटा बड़ा हो कर रहेगा
आप की सेवा में हैं तैयार ऐसे
शर्म क्या, गैरत है क्या,छोडो ये बातें
झूठ पर कायम हुआ व्यापार जैसे
ये तो सदियों से चली आई प्रथा है
होंगे ग्राहक तो चलें बाज़ार ऐसे
Sunil_Telang

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