कौन है अपना
रास्ते आसान थे मुश्किल बना बैठे हैं हम
कश्तियों को छोर से तूफाँ में ला बैठे हैं हम
रहनुमा जो भी मिला बस उसके पीछे चल दिये
पा लिये हमने मकां पर घर भुला बैठे हैं हम
आधुनिकता की ये अंधी दौड़, ये शहरीकरण
गाँव की पगडंडियों से दूर जा बैठे हैं हम
दो घडी ना पूछ पाये हाल अपनों का कभी
सिर्फ पैसों के लिये रिश्ते भुला बैठे हैं हम
हो रही हैं दूर औलादें, जुदा माँ बाप हैं
आशियाँ परदेश में अपने बना बैठे हैं हम
कौन है अपना यहाँ अपने हुये हैं अजनबी
ज़िन्दगी किस मोड़ पर ये आज ला बैठे हैं हम
Sunil _Telang /02/02/2013


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