Tuesday, November 25, 2014

PRAAYASHCHIT


प्रायश्चित

लोग  खुश   होते  रहे   कागज़  के फूलों   के लिये    
उनको  ना  देखा  जो  लड़ते  हैं  उसूलों   के   लिये
   
मूल   मुद्दों   से   जुडीं   बातें   समझ  आती   नहीं 
दे   रहे   हैं  वक़्त   अपना   उलजुलूलों   के   लिये 

ढूंढ   ना  पाये   कभी    दो   चार   सच्चे   रहनुमा 

ये   विरासत   है   सुरक्षित   नामाकूलों   के  लिये 

ताज   पाकर   भूल   बैठे  वायदों   की  अहमियत 
क्या  सज़ा  कोई  नहीं  न हुक्म अदूलों  के लिये 

बंद  आँखों  को  किये  जो   रात   दिन  चलते  रहे 
कर न पाये प्रायश्चित फिर अपनी  भूलों  के लिये 


Sunil_Telang/25/11/2014

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