प्रायश्चित
लोग खुश होते रहे कागज़ के फूलों के लिये
उनको ना देखा जो लड़ते हैं उसूलों के लिये
मूल मुद्दों से जुडीं बातें समझ आती नहीं
दे रहे हैं वक़्त अपना उलजुलूलों के लिये
ढूंढ ना पाये कभी दो चार सच्चे रहनुमा
ये विरासत है सुरक्षित नामाकूलों के लिये
ताज पाकर भूल बैठे वायदों की अहमियत
क्या सज़ा कोई नहीं उन हुक्म अदूलों के लिये
बंद आँखों को किये जो रात दिन चलते रहे
कर न पाये प्रायश्चित फिर अपनी भूलों के लिये
Sunil_Telang/25/11/2014
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