Main koi kavi ya shaayar nahin hoon, Bus jo bhi apne aas paas dekhta hoon ya apne saath ghat raha hai, usko shabdon me dhaalne ki koshish karta hoon.
Saturday, November 29, 2014
Friday, November 28, 2014
KHAIRIYAT
KHAIRIYAT
रोज़ बातें करने वाले, काम क्यों करते नहीं
कुछ नया कर के करिश्मा, जोश क्यों भरते नहीं
दूसरों की ग़लतियों को रोज़ गिनवाते हैं जो
अपनी भी उपलब्धियों का ज़िक्र क्यों करते नहीं
हो गये इतने बरस , अपना वतन आज़ाद है
अन्न है भरपूर ,फिर भी पेट क्यों भरते नहीं
देश है सम्पन्न अपना आप भी कुछ लूटिये
घर ये मेहनत की कमाई से ही क्यों भरते नहीं
रोज़ लुटती नारियों की अस्मिता, पर ग़म नहीं
राज है क़ानून का पर लोग क्यों डरते नहीं
जिनके दम से उड़ रहे हैं आसमां में रात दिन
खैरियत लेने ज़मीं पर पैर क्यों धरते नहीं
Sunil_Telang/28/11/2014
Tuesday, November 25, 2014
PRAAYASHCHIT
प्रायश्चित
लोग खुश होते रहे कागज़ के फूलों के लिये
उनको ना देखा जो लड़ते हैं उसूलों के लिये
मूल मुद्दों से जुडीं बातें समझ आती नहीं
दे रहे हैं वक़्त अपना उलजुलूलों के लिये
ढूंढ ना पाये कभी दो चार सच्चे रहनुमा
ये विरासत है सुरक्षित नामाकूलों के लिये
ताज पाकर भूल बैठे वायदों की अहमियत
क्या सज़ा कोई नहीं उन हुक्म अदूलों के लिये
बंद आँखों को किये जो रात दिन चलते रहे
कर न पाये प्रायश्चित फिर अपनी भूलों के लिये
Sunil_Telang/25/11/2014
Thursday, November 20, 2014
Tuesday, November 11, 2014
KADR
कद्र
रोज़ कपड़ों की तरह मोबाइल तुम बदला किये
उनकी आँखों का तुम्हें चश्मा नज़र आता नहीं
तेरी चिन्ता में नज़र दरवाजे से हटती नहीं
देर आधी रात को जब तक तू घर आता नहीं
हर घडी मंहगाई का रोना है बस उनके लिये
आधुनिकता का हुआ कैसा असर, जाता नहीं
अपने बचपन की ज़रा फरमाइशों को याद कर
देख कर उनकी तड़प दिल तेरा भर आता नहीं
तू उन्हें अपनाये या ठुकराये है मर्जी तेरी
कैसे कह दें तुझसे उनका अब कोई नाता नहीं
ले चुकी हैं तेरी औलादें जनम , ये समझ ले
कौन है जिसको ये वक़्त आईना दिखलाता नहीं
जीते जी ना कर सका जो कद्र माँ और बाप की
सात जन्मों तक सुकूं वो शख्स फिर पाता नहीं
Sunil _Telang /11/11/2014
Sunday, November 9, 2014
AASHAA
AASHAA
अक्लमंदों का तमाशा देखिये
हर तरफ छाई निराशा देखिये
ख्वाब टूटे अब हक़ीक़त खुल गई
आम जनता में हताशा देखिये
मुंह छुपाते लोग अब बनने लगे
पल में तोला,पल में माशा देखिये
लफ़्ज़ों में शालीनता की हद नहीं
सभ्य लोगों की ये भाषा देखिये
वक़्त फिर बदला,चलन बदलें ज़रा
सरफिरे लोगों में आशा देखिये
Sunil_Telang/09/11/2014
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