Saturday, November 29, 2014

RAASTA


रास्ता 

मेरी  नाकामियों  के  रोज़ किस्से ढूंढने वालो 
कभी अपनी भी कोई कामयाबी तो बता देना 
चला हूँ मैं तो  नेकी और सच्चाई के रस्ते पर 
तुम्हारा रास्ता क्या  है ज़रा इसका पता देना 

Sunil _Telang /29/11/2014




Friday, November 28, 2014

KHAIRIYAT



KHAIRIYAT 

रोज़  बातें   करने  वाले,  काम  क्यों   करते  नहीं 
कुछ  नया  कर के करिश्मा, जोश क्यों भरते नहीं

दूसरों  की ग़लतियों  को  रोज़  गिनवाते   हैं  जो 
अपनी भी उपलब्धियों  का ज़िक्र क्यों करते नहीं 

हो  गये   इतने  बरस , अपना   वतन  आज़ाद  है 
अन्न  है  भरपूर ,फिर  भी  पेट  क्यों  भरते   नहीं 

देश   है  सम्पन्न  अपना  आप   भी  कुछ  लूटिये 
घर ये मेहनत  की  कमाई  से  ही क्यों  भरते नहीं 

रोज़ लुटती  नारियों की अस्मिता, पर  ग़म  नहीं 
राज   है   क़ानून   का  पर  लोग  क्यों  डरते  नहीं 

जिनके  दम  से  उड़  रहे  हैं आसमां  में  रात दिन  
खैरियत   लेने   ज़मीं  पर   पैर   क्यों  धरते  नहीं    

Sunil_Telang/28/11/2014






















Tuesday, November 25, 2014

PRAAYASHCHIT


प्रायश्चित

लोग  खुश   होते  रहे   कागज़  के फूलों   के लिये    
उनको  ना  देखा  जो  लड़ते  हैं  उसूलों   के   लिये
   
मूल   मुद्दों   से   जुडीं   बातें   समझ  आती   नहीं 
दे   रहे   हैं  वक़्त   अपना   उलजुलूलों   के   लिये 

ढूंढ   ना  पाये   कभी    दो   चार   सच्चे   रहनुमा 

ये   विरासत   है   सुरक्षित   नामाकूलों   के  लिये 

ताज   पाकर   भूल   बैठे  वायदों   की  अहमियत 
क्या  सज़ा  कोई  नहीं  न हुक्म अदूलों  के लिये 

बंद  आँखों  को  किये  जो   रात   दिन  चलते  रहे 
कर न पाये प्रायश्चित फिर अपनी  भूलों  के लिये 


Sunil_Telang/25/11/2014

Thursday, November 20, 2014

DARD

दर्द 

दूर  रहते  हैं  मगर  दिल  से  जुदा  होते नहीं 
साथ जो गुज़रे हैं पल वो उम्र  भर खोते नहीं 
दर्द  सीने  में  छुपाये तू   भी  जीना  सीख ले 
मुस्कुराते  लोग  अक्सर  सामने  रोते  नहीं 

Sunil _Telang /20/11/2014


Tuesday, November 11, 2014

KADR


कद्र 

रोज़ कपड़ों की तरह मोबाइल तुम बदला  किये 
उनकी आँखों  का तुम्हें चश्मा नज़र आता नहीं 

तेरी  चिन्ता  में  नज़र  दरवाजे  से  हटती नहीं 
देर आधी  रात  को  जब  तक तू घर आता नहीं 

हर  घडी  मंहगाई  का  रोना  है बस उनके लिये 
आधुनिकता  का  हुआ कैसा असर, जाता  नहीं

अपने बचपन की ज़रा फरमाइशों  को याद कर 
देख कर उनकी तड़प दिल तेरा  भर आता नहीं 

तू  उन्हें  अपनाये  या  ठुकराये   है  मर्जी  तेरी 
कैसे कह दें तुझसे  उनका अब कोई नाता नहीं 

ले  चुकी  हैं  तेरी  औलादें  जनम , ये  समझ ले  
कौन है जिसको ये वक़्त आईना दिखलाता नहीं 

जीते जी ना कर सका जो कद्र माँ और बाप की 
सात जन्मों तक सुकूं वो शख्स फिर पाता नहीं 

Sunil _Telang /11/11/2014





Sunday, November 9, 2014

AASHAA



AASHAA

अक्लमंदों   का   तमाशा   देखिये 
हर  तरफ   छाई  निराशा  देखिये 

ख्वाब  टूटे अब हक़ीक़त खुल गई 

आम  जनता  में   हताशा  देखिये 

मुंह  छुपाते  लोग  अब बनने लगे 

पल में तोला,पल में माशा देखिये 

लफ़्ज़ों  में  शालीनता की हद नहीं 

सभ्य लोगों  की ये  भाषा  देखिये 

वक़्त फिर बदला,चलन बदलें ज़रा 

सरफिरे  लोगों   में  आशा  देखिये 

Sunil_Telang/09/11/2014