Thursday, December 19, 2019

KAISA HUN MAIN



KAISA HUN MAIN 

पूछती  है  रोज़   माँ ,  कैसा  हूँ  मैं                          
मैं भी बस  कह देता हूँ, अच्छा हूँ मैं.                         
                                                                                             
गोद  में  तेरी  मेरा बचपन गया           
आई  जवानी, ये  लड़कपन  गया                             
तेरी  नज़रों में मगर  बच्चा हूँ मैं  

कैरियर की चाह में परदेस भेजा.       
चीर कर के रख दिया अपना कलेजा
सोच कर भूला हुआ किस्सा हूँ मैं

खूब कर के देख ली मैंने पढ़ाई
आस तेरी मैंने पूरी कर दिखाई
अब नई  पीढ़ी का इक हिस्सा हूँ मैं
                                                                       
तुझको मैं कैसे बताऊँ अपना हाल.                     
तेरे बिन कैसे गुज़ारे इतने साल
मैं  अभी  पक्का  नहीं  कच्चा हूँ मैं 
                                                                            
याद आता है  तेरा  आँगन चौबारा                                                                         
वो रसोईघर  के अंदर का नज़ारा
पूछती थी रोज़ क्या खाना बनाऊं
जो तुझे भाये, वही मैं डिश खिलाऊं    
                                                                                                       
जाने अनजाने  नई  शैतानी  करना                                                           
और पापा के कड़े गुस्से से   डरना
रोज़   मेरा    रूठना,  तेरा    मनाना
गोद  में फिर रख के सर, तेरा सुलाना
ज़िद नहीं कोई, मगर ख्वाहिश है छोटी 
फिर मिले मुझको तेरे हाथों की रोटी 

झूठ  मैं  कहता नहीं , सच्चा  हूँ  मैं 
माँ तू मत करना फ़िकर, अच्छा हूँ मैं     

Sunil _Telang /19/12/2019                                                                        











Tuesday, September 17, 2019

HUME SWEEKAR HAI



HUME SWEEKAR HAI

हमें  स्वीकार  है ये  लूट  भ्रष्टाचार  भी 
हमें स्वीकार है मंहगाई की ये मार भी 
जुबां  मत  खोलना,आँखों को रखना बंद तू  
हमें  स्वीकार है  नारी पे अत्याचार भी 

अब किसलिये  शिकवे  गिले करते हो तुम
खुद अपनी  परछाई  से  भी  डरते  हो तुम 
तमाशाई  बने ये उम्र   गुजरी  है यहां  
हुये  हम तो यहाँ बेज़ार भी बीमार भी 

अब है तेरा कुछ मान क्या सम्मान क्या
बस वोट है तू और तेरी पहचान क्या 
फिर चुन लिया उसको भला जो भी लगा  
भुला बैठे हैंअपने हक़ सभी,अधिकार भी 

Sunil_Telang/17/09/2019

Tuesday, August 13, 2019



CHAAHAT

मुझे चाहत नहीं सबके लबों पर मेरा नाम आये 
फ़क़त ख्वाहिश है इतनी ये किसी बेबस के काम आये 
हो कोई जाति या मज़हब, रहे इंसानियत कायम 
ख़ुदा मंदिर में ले अवतार और मस्जिद में राम आये 

Sunil _Telang/13/08/2019

Tuesday, July 30, 2019

SAZAA


SAZAA 

गली नुक्कड़ पे हो हल्ला, ये आखिर  मामला क्या है 
सभी   को   याद  आई  देशभक्ति,  ये  बला  क्या  है 

वफादारी    हुई   कायम    फकत   नारे   लगाने   से 

समझ  पाता   नहीं  कोई  बुरा  क्या है,  भला क्या है

किसी का  घर  जला, तो  कोई जां  से  हाथ धो बैठा 
न  गुज़रे  जब  तलक  खुद  पे  तो तेरा वास्ता क्या है 

भटकते   हैं   यहाँ  कितने,  सुने  उनकी  सदा  कोई
अगर मिलता नहीं न्याय, तो फिर ये  फैसला  क्या है  

वतन  ये  घिर गया अपना फकत  फिरकापरस्तों से 
न  दे  पाये  सज़ा  इनको  तो  फिर ये हौसला क्या है 

Sunil_Telang/30/07/2019


Tuesday, July 9, 2019

SUNAHLE KHWAAB



SUNAHLE KHWAAB

खूबसूरत   रास्ते  भी    हैं   बहुत   मंज़िल   से   पहले 
कुछ  मगर  तू  राह  की   दुश्वारियों  का  दर्द  सह  ले

पायेगा  क्या  अपना  दुखड़ा  दूसरों  को तू  सूना कर  
अपने दिल से बात कर, जो भी तुझे कहना है कह ले 

हर  निराशा  में  छुपी  बैठी  है  आशा , ये  समझ  ले 
लब पे रख मुस्कान  तू  आंसुओं  के दरिया में  बह ले 

 जो  हुआ अच्छा  हुआ, आगे  जो  होगा  ठीक  होगा 
अपने  सर  पर  बोझ  गुज़रे वक़्त  का ना  बेवजह ले 

ज़िन्दगी का फलसफा है, हर ख़ुशी  के साथ ग़म भी
अपनी आँखों  में  हमेशा  ख्वाब  तू  रखना  सुनहले 

Sunil _Telang/09/07/2019


Tuesday, June 18, 2019

MUFLIS



MUFLIS

कोई    उम्मीद   नहीं,   ख्वाब   नहीं 
बेबसी   का   भी   कुछ  जवाब  नहीं 

कौन  आयेगा   पुरसिश-ए -ग़म   को 
तुम हो  मुफ़लिस,  कोई  नवाब नहीं 

हादसों    पर    मलाल   क्या   करना 
खेल   कुदरत   का  है,   अज़ाब  नहीं 

और  हो   कोई  चटपटी   सी   खबर 
बह    रहा    है    लहू,    शराब   नहीं 

और   बढ़ने    दो    कद  गुनाहों  का 
ज़ुल्म   बिन   कोई   कामयाब    नहीं 

(पुरसिश-ए -ग़म -Haal-Chaal)

Sunil _Telang/18/06/2019 


Friday, June 14, 2019

MAIN KALAM


MAIN KALAM

दास्ताँ    रोज़    सुना     देता   हूँ 
कुछ   नये    शेर   बना   देता  हूँ 
ज़ुल्म  की  इन्तेहा  जब  होती है 
मैं  कलम  अपनी  चला  देता  हूँ 

रोज़  चलता  है  खेल वहशत का 
कैसा  माहौल   हुआ दहशत  का 
बच्चियां खेल  की  इक  चीज़ हुईं
कोई  रखवाला  नहीं  अस्मत का 

पीर  जिस  पर  भी  ये गुज़रती है 
उनके  ज़ख्मों  की  दवा  देता  हूँ 
मैं   कलम  अपनी  चला  देता  हूँ  

हादसे ,    लूट      और     हत्यायें 
रोज़   कटती   हैं   सैंकड़ों   गायें 
तपी   धरती    उजाड़  के  जंगल 
कैसे   पेड़ों   के   बिन  हवा  पायें 

अक़्लमंदों    की     ऐसी  नादानी 
देख   कर   अश्क़  बहा  देता   हूँ 
मैं   कलम  अपनी  चला  देता  हूँ 

कौन, किससे, कहाँ फ़रियाद करे 
बागवां   खुद   चमन   बर्बाद  करे 
जीते  जी  कुछ  भलाई  कर  लेना 
बाद   मरने   के   कौन  याद  करे 

बेखबर,   बेफिकर   जो   सोये  हैं 
नींद   से   उनको  जगा   देता   हूँ 
मैं   कलम   अपनी  चला  देता  हूँ 

Sunil_Telang/14/06/2019









Sunday, May 26, 2019


MAATAM 

कहीं  है  जीत का मौसम, कहीं  माहौल  मातम का  
जश्न के  शोर में फुर्सत  किसे, नग़मा  सुने  ग़म  का

किसी की छिन गई ज्योति, किसी ने लाल खोया है 
तमाशा बाद  में करना, अभी  है  वक़्त  मरहम  का 

हज़ारों हादसे हैं इन्तेज़ारी में करे तो क्या करे इन्सां 
कि अब तो  सांस लेना भी हुआ है काम जोखम का 

सबक  सीखेंगे  कब  हम  हादसों  से कोई बतलाये 
खबर पढ़  कर  भुला  देना  बना  दस्तूर आलम का 

Sunil _Telang /25/05/2019