KAISA HUN MAIN
पूछती है रोज़ माँ , कैसा हूँ मैं
मैं भी बस कह देता हूँ, अच्छा हूँ मैं.
गोद में तेरी मेरा बचपन गया
आई जवानी, ये लड़कपन गया
तेरी नज़रों में मगर बच्चा हूँ मैं
कैरियर की चाह में परदेस भेजा.
चीर कर के रख दिया अपना कलेजा
सोच कर भूला हुआ किस्सा हूँ मैं
खूब कर के देख ली मैंने पढ़ाई
आस तेरी मैंने पूरी कर दिखाई
अब नई पीढ़ी का इक हिस्सा हूँ मैं
तुझको मैं कैसे बताऊँ अपना हाल.
तेरे बिन कैसे गुज़ारे इतने साल
मैं अभी पक्का नहीं कच्चा हूँ मैं
याद आता है तेरा आँगन चौबारा
वो रसोईघर के अंदर का नज़ारा
पूछती थी रोज़ क्या खाना बनाऊं
जो तुझे भाये, वही मैं डिश खिलाऊं
जाने अनजाने नई शैतानी करना
और पापा के कड़े गुस्से से डरना
रोज़ मेरा रूठना, तेरा मनाना
गोद में फिर रख के सर, तेरा सुलाना
ज़िद नहीं कोई, मगर ख्वाहिश है छोटी
फिर मिले मुझको तेरे हाथों की रोटी
झूठ मैं कहता नहीं , सच्चा हूँ मैं
माँ तू मत करना फ़िकर, अच्छा हूँ मैं
Sunil _Telang /19/12/2019
HUME SWEEKAR HAI
हमें स्वीकार है ये लूट भ्रष्टाचार भी
हमें स्वीकार है मंहगाई की ये मार भी
जुबां मत खोलना,आँखों को रखना बंद तू
हमें स्वीकार है नारी पे अत्याचार भी
अब किसलिये शिकवे गिले करते हो तुम
खुद अपनी परछाई से भी डरते हो तुम
तमाशाई बने ये उम्र गुजरी है यहां
हुये हम तो यहाँ बेज़ार भी बीमार भी
अब है तेरा कुछ मान क्या सम्मान क्या
बस वोट है तू और तेरी पहचान क्या
फिर चुन लिया उसको भला जो भी लगा
भुला बैठे हैंअपने हक़ सभी,अधिकार भी
Sunil_Telang/17/09/2019
CHAAHAT
मुझे चाहत नहीं सबके लबों पर मेरा नाम आये
फ़क़त ख्वाहिश है इतनी ये किसी बेबस के काम आये
हो कोई जाति या मज़हब, रहे इंसानियत कायम
ख़ुदा मंदिर में ले अवतार और मस्जिद में राम आये
Sunil _Telang/13/08/2019
SAZAA
गली नुक्कड़ पे हो हल्ला, ये आखिर मामला क्या है
सभी को याद आई देशभक्ति, ये बला क्या है
वफादारी हुई कायम फकत नारे लगाने से
समझ पाता नहीं कोई बुरा क्या है, भला क्या है
किसी का घर जला, तो कोई जां से हाथ धो बैठा
न गुज़रे जब तलक खुद पे तो तेरा वास्ता क्या है
भटकते हैं यहाँ कितने, सुने उनकी सदा कोई
अगर मिलता नहीं न्याय, तो फिर ये फैसला क्या है
वतन ये घिर गया अपना फकत फिरकापरस्तों से
न दे पाये सज़ा इनको तो फिर ये हौसला क्या है
Sunil_Telang/30/07/2019
SUNAHLE KHWAAB
खूबसूरत रास्ते भी हैं बहुत मंज़िल से पहले
कुछ मगर तू राह की दुश्वारियों का दर्द सह ले
पायेगा क्या अपना दुखड़ा दूसरों को तू सूना कर
अपने दिल से बात कर, जो भी तुझे कहना है कह ले
हर निराशा में छुपी बैठी है आशा , ये समझ ले
लब पे रख मुस्कान तू आंसुओं के दरिया में बह ले
जो हुआ अच्छा हुआ, आगे जो होगा ठीक होगा
अपने सर पर बोझ गुज़रे वक़्त का ना बेवजह ले
ज़िन्दगी का फलसफा है, हर ख़ुशी के साथ ग़म भी
अपनी आँखों में हमेशा ख्वाब तू रखना सुनहले
Sunil _Telang/09/07/2019
MUFLIS
कोई उम्मीद नहीं, ख्वाब नहीं
बेबसी का भी कुछ जवाब नहीं
कौन आयेगा पुरसिश-ए -ग़म को
तुम हो मुफ़लिस, कोई नवाब नहीं
हादसों पर मलाल क्या करना
खेल कुदरत का है, अज़ाब नहीं
और हो कोई चटपटी सी खबर
बह रहा है लहू, शराब नहीं
और बढ़ने दो कद गुनाहों का
ज़ुल्म बिन कोई कामयाब नहीं
(पुरसिश-ए -ग़म -Haal-Chaal)
Sunil _Telang/18/06/2019
MAIN KALAM
दास्ताँ रोज़ सुना देता हूँ
कुछ नये शेर बना देता हूँ
ज़ुल्म की इन्तेहा जब होती है
मैं कलम अपनी चला देता हूँ
रोज़ चलता है खेल वहशत का
कैसा माहौल हुआ दहशत का
बच्चियां खेल की इक चीज़ हुईं
कोई रखवाला नहीं अस्मत का
पीर जिस पर भी ये गुज़रती है
उनके ज़ख्मों की दवा देता हूँ
मैं कलम अपनी चला देता हूँ
हादसे , लूट और हत्यायें
रोज़ कटती हैं सैंकड़ों गायें
तपी धरती उजाड़ के जंगल
कैसे पेड़ों के बिन हवा पायें
अक़्लमंदों की ऐसी नादानी
देख कर अश्क़ बहा देता हूँ
मैं कलम अपनी चला देता हूँ
कौन, किससे, कहाँ फ़रियाद करे
बागवां खुद चमन बर्बाद करे
जीते जी कुछ भलाई कर लेना
बाद मरने के कौन याद करे
बेखबर, बेफिकर जो सोये हैं
नींद से उनको जगा देता हूँ
मैं कलम अपनी चला देता हूँ
Sunil_Telang/14/06/2019
MAATAM
कहीं है जीत का मौसम, कहीं माहौल मातम का
जश्न के शोर में फुर्सत किसे, नग़मा सुने ग़म का
किसी की छिन गई ज्योति, किसी ने लाल खोया है
तमाशा बाद में करना, अभी है वक़्त मरहम का
हज़ारों हादसे हैं इन्तेज़ारी में करे तो क्या करे इन्सां
कि अब तो सांस लेना भी हुआ है काम जोखम का
सबक सीखेंगे कब हम हादसों से कोई बतलाये
खबर पढ़ कर भुला देना बना दस्तूर आलम का
Sunil _Telang /25/05/2019