INSAANIYAT
साल दर साल कैलेंडर बदले
गाँव कूचे गली शहर बदले
हाल अपना है बदलता ही नहीं
ख्वाब दिखला के राहवर बदले
नाम इसका कहीं गरीबी है
कोई कहता है बदनसीबी है
मर्ज़ कैसा ये लाइलाज हुआ
रोज़ कितने ही चारागर बदले
ईद का वक़्त हो या दीवाली
कैसा त्यौहार पेट गर खाली
अपना तो जश्न जब मिले रोटी
ये हिकारत भरी नज़र बदले
है हमारा वजूद भी मानो
हमको बस वोट बैंक ना जानो
सिर्फ इन्सानियत का जज्बा हो
देश बदलेगा पहले घर बदले
Sunil_Telang/18/01/2016
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