Monday, January 18, 2016

INSAANIYAT



INSAANIYAT

साल   दर  साल  कैलेंडर  बदले 
गाँव   कूचे   गली   शहर   बदले 
हाल  अपना  है बदलता ही नहीं 
ख्वाब  दिखला के राहवर बदले 

नाम   इसका   कहीं  गरीबी   है 
कोई   कहता  है   बदनसीबी  है 
मर्ज़   कैसा  ये  लाइलाज   हुआ 
रोज़  कितने  ही  चारागर  बदले

ईद   का  वक़्त  हो  या   दीवाली
कैसा  त्यौहार   पेट  गर   खाली  
अपना  तो  जश्न  जब  मिले रोटी
ये   हिकारत   भरी  नज़र  बदले 

है     हमारा     वजूद   भी  मानो  
हमको बस  वोट  बैंक ना जानो 
सिर्फ इन्सानियत का  जज्बा हो 
देश   बदलेगा  पहले  घर  बदले 

Sunil_Telang/18/01/2016











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