Sunday, January 10, 2016

BACHPAN


बचपन 

गुज़रता है यूँ ही सड़कों पे सुबहो शाम ये  बचपन 
पढ़ाई  की उमर  में  ढूंढता  क्यों  काम ये  बचपन   
न  मंज़िल  का पता है  ना कोई घर बार है इनका 
फकत रोटी की चिंता में हुआ गुमनाम ये बचपन

Sunil_Telang/10/01/2016







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