Monday, January 18, 2016

INSAANIYAT



INSAANIYAT

साल   दर  साल  कैलेंडर  बदले 
गाँव   कूचे   गली   शहर   बदले 
हाल  अपना  है बदलता ही नहीं 
ख्वाब  दिखला के राहवर बदले 

नाम   इसका   कहीं  गरीबी   है 
कोई   कहता  है   बदनसीबी  है 
मर्ज़   कैसा  ये  लाइलाज   हुआ 
रोज़  कितने  ही  चारागर  बदले

ईद   का  वक़्त  हो  या   दीवाली
कैसा  त्यौहार   पेट  गर   खाली  
अपना  तो  जश्न  जब  मिले रोटी
ये   हिकारत   भरी  नज़र  बदले 

है     हमारा     वजूद   भी  मानो  
हमको बस  वोट  बैंक ना जानो 
सिर्फ इन्सानियत का  जज्बा हो 
देश   बदलेगा  पहले  घर  बदले 

Sunil_Telang/18/01/2016











Thursday, January 14, 2016

BUS MUJHE ITNA PATA HAI



बस मुझे इतना पता है

तुझसे मेरी हर  ख़ुशी है  बस मुझे इतना पता है 
तू  ही  मेरी  ज़िन्दगी  है बस मुझे इतना पता है

इक तरफ सूरत ये  तेरी  इक तरफ ये कायनात  (कायनात-World)
तुझसे बढ़के कुछ नहीं है बस मुझे इतना पता है

तेरी  बाँहों  में  सिमट कर भूल बैठे  ये  जहां हम 

मेरी  जन्नत  तो यहीं है बस मुझे इतना पता है

फासले  कितने  भी  हों  मेरे  खयालों  में   है  तू 
दूर  तू  मुझसे नहीं  है  बस मुझे  इतना  पता है

कितने जलवे  हर  तरफ हैं  पर मेरा मज़मून तू  (मज़मून- Topic)
तू  ही  मेरी  शायरी  है बस  मुझे  इतना पता  है

Sunil_Telang/14/01/2016 




Sunday, January 10, 2016

BACHPAN


बचपन 

गुज़रता है यूँ ही सड़कों पे सुबहो शाम ये  बचपन 
पढ़ाई  की उमर  में  ढूंढता  क्यों  काम ये  बचपन   
न  मंज़िल  का पता है  ना कोई घर बार है इनका 
फकत रोटी की चिंता में हुआ गुमनाम ये बचपन

Sunil_Telang/10/01/2016