Friday, January 10, 2020

KHWAAB


KHWAAB


रोज़ इक मुद्दे को लेकर हम बहस करते रहे 
वो हमे उलझा  के अपनी  जेब को भरते रहे 

अपनी अपनी सोच है, क्या है ग़लत और क्या सही 
अपनी ज़िद में पीछे पीछे बस  कदम धरते  रहे 

उसके घर को फूंकने से रौशनी होगी नहीं 
भूल कर  हम आपसी  रंजिश  में ही मरते रहे 

हो न जायें बेवतन, मिट जाए ना अपना वज़ूद 
बेवजह के खौफ से हम रात दिन डरते रहे 

राह भटकाते रहे, हम जिनको समझे राहबर 
ख्वाब भी पत्तों की तरह  टूटते झरते रहे 

Sunil_Telang/10/01/2020

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