FIKRMAND
लोग कुछ ऐसे भी जीते हैं यहां
मुस्कुरा कर अश्क़ पीते हैं यहां
क्यों हुये अपने पराये , अपना ग़म
भूल कर दिन रात जीते हैं यहां
जब तलक है इनके बाज़ुओं में दम
हंस के अपने ज़ख्म सींते हैं यहां
कौन है जो इन पे डाले इक नज़र
हर तरफ बस लाल फीते हैं यहां
फिक्रमंद हैं जो गरीबों के लिये
क्यों खजाने उनके रीते हैं यहां
Sunil_Telang/26/12/2018
BAANKPAN
किसलिए इतना गुमां है अपने तन पर
चल फ़िदा हो जायें हम अपने वतन पर
आये खाली हाथ क्या जायेंगे ले कर
तू बचा ले जां किसी की रक्त दे कर
नाम लिख जाये तेरा धरती गगन पर
काम आ जाये किसी के ये जवानी
बेवजह बन जाये ना ये खून पानी
इक नया इतिहास लिख दें हम चमन पर
बंदगी होगी, किसी के काम आयें
काम है ये नेक तू ले ले दुआयें
होंगे सब कुर्बान तेरे बांकपन पर
Sunil _Telang /26/12/2018