KHABAR
तुम हो केवल इक खबर अखबार भरने के लिये
और भी मुद्दे बहुत हैं ज़िक्र करने के लिये
तुम ग़रीबी में पले हो, है तेरी औकात क्या
जी रहे हो इस जहां में रोज़ मरने के लिये
हाल तेरा कौन पूछे, सब को बस अपनी फ़िकर
रोज़ करते हैं नये वादे मुकरने के लिये
पी रहा देखो लहू, अब आदमी का आदमी
तेरे आंसू ही दवा हैं ज़ख्म भरने के लिये
जात मज़हब में बंटा जग खो गई इंसानियत
आ गया है वक़्त अब कुछ कर गुजरने के लिये
Sunil_Telang/25/02/2018
SARKAAR
बहुत बातें हुई लेकिन हक़ीक़त दूर लगती है
गरीबों के लिये सरकार क्यों मजबूर लगती है
परेशां ज़िन्दगी है पर जुबां पर लग गये ताले
नशा हो इश्क़ का तो फिर गधी भी हूर लगती है
फ़क़त वादे हैं सपने हैं मगर कुछ भी नहीं बदला
ग़मों की भीड़ है हरसू ख़ुशी काफूर लगती है
गरीबी भूख मंहगाई नहीं मुद्दे रहे कोई
मुई सरकार भी सत्ता के मद में चूर लगती है
Sunil_Telang
ZINDAGI
चंद लम्हों की ख़ुशी है ज़िन्दगी
वर्ना बस इक बेबसी है ज़िन्दगी
दर्द सीने में छुपाना सीख ले
तेरे चेहरे की हँसी है ज़िन्दगी
जिनके जीने का कोई मक़सद नहीं
उनकी हरदम आलसी है ज़िन्दगी
छोड़ दे शिकवा गिला तकदीर से
मुस्कराहट में बसी है ज़िन्दगी
Sunil _Telang /04/02/2018