Sunday, February 25, 2018


KHABAR 

तुम हो केवल इक खबर अखबार भरने के लिये 
और  भी  मुद्दे   बहुत   हैं   ज़िक्र  करने  के  लिये 

तुम  ग़रीबी  में  पले  हो,   है   तेरी  औकात  क्या 
जी  रहे  हो  इस  जहां  में   रोज़  मरने   के  लिये  

हाल तेरा कौन पूछे, सब  को बस अपनी फ़िकर 
रोज़   करते    हैं    नये    वादे   मुकरने  के  लिये 

पी   रहा   देखो  लहू,  अब  आदमी  का  आदमी 
तेरे  आंसू   ही  दवा   हैं  ज़ख्म  भरने   के   लिये 

जात  मज़हब  में  बंटा  जग  खो  गई  इंसानियत 
आ गया है वक़्त अब  कुछ कर गुजरने  के  लिये 

Sunil_Telang/25/02/2018




















Wednesday, February 7, 2018

MAJBOOR



SARKAAR


बहुत  बातें  हुई  लेकिन  हक़ीक़त  दूर लगती  है 
गरीबों  के  लिये सरकार क्यों मजबूर लगती  है 

परेशां  ज़िन्दगी  है  पर जुबां  पर लग गये  ताले 

नशा हो इश्क़ का तो  फिर गधी भी हूर लगती है 

फ़क़त वादे हैं सपने हैं मगर कुछ भी नहीं बदला  

ग़मों  की भीड़  है  हरसू   ख़ुशी काफूर लगती  है 

गरीबी    भूख   मंहगाई    नहीं  मुद्दे    रहे  कोई  

मुई  सरकार  भी सत्ता के मद  में चूर लगती  है 


Sunil_Telang

Monday, February 5, 2018

ZINDAGI



ZINDAGI

चंद  लम्हों  की  ख़ुशी   है ज़िन्दगी
वर्ना  बस  इक  बेबसी  है ज़िन्दगी

दर्द   सीने   में   छुपाना   सीख  ले 
तेरे  चेहरे   की   हँसी   है  ज़िन्दगी 

जिनके जीने का कोई मक़सद नहीं 
उनकी हरदम  आलसी है ज़िन्दगी

छोड़ दे  शिकवा गिला तकदीर  से  
मुस्कराहट  में   बसी   है   ज़िन्दगी

Sunil _Telang /04/02/2018