ज़ख्म
अभी तक कुछ नहीं बदला सिवा तारीख और दिन के
अँधेरी रात कटती है सितारे रोज़ गिन गिन के
नई उम्मीद थी , कितने नये अरमान थे दिल में
हुये वो अजनबी हम भी कभी शैदाई थे जिनके
सितम ये है यहां लूटा है अपनों ने वतन अपना
मुसाफिर खाने जैसे हो गये घर बार साकिन के
छुपाये बैठे हैं दिल में हज़ारों ज़ख्म जो अब तक
बनेंगे एक दिन तूफां इन्हें समझो नहीं तिनके
Sunil_Telang / 21/04/2015

No comments:
Post a Comment