अच्छे दिन
बेवजह ये आँखें ना अश्क़वार कीजिये
हँस के इन्सानियत को शर्मसार कीजिये
जान हथेली पे लिये जीते हैं लोग यहां
रोज़ नये हादसों का इन्तज़ार कीजिये
किसको दें दोष यहां लूटा है अपनों ने
चर्चा ना दुश्मनों की बार बार कीजिये
हादसे की जांच होगी फिर पुरानी बातें हैं
कुछ तो नया काम सरकार कीजिये
हादसा ये छोटा था इसका कुछ ग़म नहीं
अच्छे दिन आयेंगे ऐतबार कीजिये
Sunil _Telang/25/06/2014

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