ज़ुल्म
ज़ुल्म सहने की हमें आदत पड़ी थी
इसलिये तेरी दवा ना काम आई
जब भी तूने कुछ अलग कर के दिखाया
फैसलों पर सबने बस तोहमत लगाईं
सो रहा था हो के बेबस आम इन्सां
तूने आशा की किरण मन में जगाई
उड़ गईं रातों की नीदें भ्रष्ट जन की
ये मुसीबत फिर कहाँ से सर पे आई
सामने आये नज़र सबके इरादे
खुल गई जो असलियत अब तक छुपाई
चाहे कितने झूठ तेरी राह रोकें
सत्य की रक्षा करेगी ये खुदाई
Sunil_Telang/08/02/2014

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