जीत या हार
फिर बहस होने लगी ये जीत है या हार है
पर हकीकत खुल गई सिस्टम अभी बीमार है
आम जनता के लिये उलझे हुये क़ानून हैं
देश का ये संविधान देश पर ही भार है
लूट और मंहगाई की चर्चा नहीं करता कोई
मुफलिसी के दौर में जीना भी अब दुश्वार है
तुम हो इक आम आदमी चुपचाप बस बैठे रहो
और मुद्दे हैं ज़रूरी, फ़िक्र में सरकार है
वक़्त आया है करें मौका परस्तों को विदा
अब नतीजा ना मिला तो ज़िन्दगी बेकार है
Sunil_Telang/15/02/2014

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