दोहे
समझ सको तो है यही इस जीवन का सार
प्रेम भाव से जो मिले कर लेना स्वीकार
मिल जाये ये सल्तनत, ख्वाहिश का ना अंत
दो कपड़ों में भी प्रसन्न देखे कितने संत
तेरा मेरा रोज़ कर जीवन दिया बिताय
जो तुझ पर अर्पण करे जनम सफल हो जाय
धन- दौलत, ऊंचे महल, सुख के ना पर्याय
चंचल मन की शान्ति जीवन में सुख लाय
अपनी अपनी सोच है , अपना अपना राग
करो भलाई दीन की खुल जायेंगे भाग
Sunil_Telang/30/07/2013

No comments:
Post a Comment