Tuesday, June 18, 2019

MUFLIS



MUFLIS

कोई    उम्मीद   नहीं,   ख्वाब   नहीं 
बेबसी   का   भी   कुछ  जवाब  नहीं 

कौन  आयेगा   पुरसिश-ए -ग़म   को 
तुम हो  मुफ़लिस,  कोई  नवाब नहीं 

हादसों    पर    मलाल   क्या   करना 
खेल   कुदरत   का  है,   अज़ाब  नहीं 

और  हो   कोई  चटपटी   सी   खबर 
बह    रहा    है    लहू,    शराब   नहीं 

और   बढ़ने    दो    कद  गुनाहों  का 
ज़ुल्म   बिन   कोई   कामयाब    नहीं 

(पुरसिश-ए -ग़म -Haal-Chaal)

Sunil _Telang/18/06/2019 


Friday, June 14, 2019

MAIN KALAM


MAIN KALAM

दास्ताँ    रोज़    सुना     देता   हूँ 
कुछ   नये    शेर   बना   देता  हूँ 
ज़ुल्म  की  इन्तेहा  जब  होती है 
मैं  कलम  अपनी  चला  देता  हूँ 

रोज़  चलता  है  खेल वहशत का 
कैसा  माहौल   हुआ दहशत  का 
बच्चियां खेल  की  इक  चीज़ हुईं
कोई  रखवाला  नहीं  अस्मत का 

पीर  जिस  पर  भी  ये गुज़रती है 
उनके  ज़ख्मों  की  दवा  देता  हूँ 
मैं   कलम  अपनी  चला  देता  हूँ  

हादसे ,    लूट      और     हत्यायें 
रोज़   कटती   हैं   सैंकड़ों   गायें 
तपी   धरती    उजाड़  के  जंगल 
कैसे   पेड़ों   के   बिन  हवा  पायें 

अक़्लमंदों    की     ऐसी  नादानी 
देख   कर   अश्क़  बहा  देता   हूँ 
मैं   कलम  अपनी  चला  देता  हूँ 

कौन, किससे, कहाँ फ़रियाद करे 
बागवां   खुद   चमन   बर्बाद  करे 
जीते  जी  कुछ  भलाई  कर  लेना 
बाद   मरने   के   कौन  याद  करे 

बेखबर,   बेफिकर   जो   सोये  हैं 
नींद   से   उनको  जगा   देता   हूँ 
मैं   कलम   अपनी  चला  देता  हूँ 

Sunil_Telang/14/06/2019