GUZRA ZAMAANA
चलो कुछ बात करलें आज फिर गुज़रे ज़माने की
कभी हमको भी थी आदत हमेशा मुस्कुराने की
सुबह और शाम अक्सर दोस्तों से रोज़ मिलते ही
रसोई घर में जाकर ढूँढना कुछ चीज़ खाने की
न तेरा कुछ, न कुछ मेरा, मिले जो बाँट कर खाना
बड़े कुनबे से ही, रहती थी रौनक, आशियाने की
दबाना पाँव दादी के, मिले कुछ जेब का खर्चा
बड़ी कीमत हुआ करती थी पहले एक आने की
समय बदला, हुये अपने पराये , लोग पढ़ पढ़ कर
बनी मोबाइल और टीवी की आदत दिल लगाने की
गया जो वक़्त,अच्छा या बुरा था,सोचना अब क्या
बनायें मुस्कुराहट को दवा, हर ग़म भुलाने की
Sunil_Telang/29/04/2015