परख
सयाने लोग ही नादानियाँ अक्सर दिखाते हैं
यहाँ शीशे के घर उनके भी हैं ये भूल जाते हैं
कभी हो के मियां मिट्ठू तमाशा खुद ही बनते हैं
लगा कर आग अपने ही कलेजे को जलाते हैं
गवारा ये नहीं उनको भी कोई राह दिखलाये
सबक कोई नहीं इतिहास से वो सीख पाते हैं
फ़क़त नाकामियाँ गिनवाने में ही वक़्त जाता है
नहीं उपलब्धियां अपनी किसी को वो दिखाते हैं
नहीं इतने भी भोले लोग हैं इतना समझ लीजे
परख कर जान कर ही लोग अब सर पे बिठाते हैं
Sunil_Telang/04/01/2014

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