आयेगा स्वराज
दीप उम्मीदों के जलते जा रहे हैं
रुख हवाओं के बदलते जा रहे हैं
आ गया है राज अब आम आदमी का
गर्दिशों के साये ढलते जा रहे हैं
अपनी ज़िद में राज सिंहासन लुटा के
कुछ सयाने हाथ मलते जा रहे हैं
मच गया हड़कम्प भ्रष्टाचारियों में
तिकड़मों के दौर चलते जा रहे हैं
आयेगा स्वराज देखेगा ज़माना
ख्वाब अब आँखों में पलते जा रहे हैं
Sunil_Telang/27/12/2013

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