Saturday, October 21, 2017

KHANAK


KHANAK 

लुटा  है आशियाँ, फिर भी नहीं लेता सबक कोई 
सुकूं  देती   हवाओं  पर  नहीं  है  तेरा  हक़  कोई 

घड़ी भर को तेरा होकर  तेरा दुःख-दर्द जो समझे 
नहीं  पैदा  हुआ   ऐसा  मसीहा  आज  तक  कोई 

बहुत कोशिश  हुई  हो  बात रोटी और ग़रीबी की 
हटा   लेता  है  ये  मुद्दा  भी  आके यकबयक कोई 

फकत   बातें   हुईं,  वादे  हुये  तुझको  लुभाने  के 
बदल पाया  नहीं चेहरा   शहर  से गाँव तक  कोई

संभल जा  ऐ  मुसाफिर जान  ले मंज़िल कहाँ  तेरी 
तुझे भटका न दे फिर चंद सिक्कों की खनक कोई

Sunil_Telang/21/10/2017







Sunday, October 8, 2017

INSAANIYAT



INSAANIYAT 

करें कुछ बात रोटी की अगर थोड़ी  सी फुर्सत  हो 
मिले दो पल सुकूं सबको बस इतनी सी इनायत हो 

उलझ कर रह गए हैं लोग मंदिर  और मस्जिद में 

हटायें  आँख  से  पर्दा  तो  दीदार-ए-हक़ीक़त  हो 

बने  हैं  सब  तमाशाई   हज़ारों  ज़ुल्म  सह सह  के 
जुबां से हम भी कुछ बोलें अगर थोड़ी  इज़ाज़त हो 

बड़ा मैं हूँ न तू छोटा,ना मैं  काबिल ना  तू जाहिल 
रखें  इंसानियत  दिल  में  तो  दुनिया खूबसूरत हो

Sunil _Telang/08/10/2017